Wednesday, March 9, 2011

क्यों न रावन की जगह आज राम को जलाया जाए

 इरान की एक महिला जेल की सलाखों मैं बंद है उसका कसूर था की उसने अपनी पति की हत्या कर दी ! उसका पति एक अय्याश किस्म का आदमी था जो जबरन उससे वैश्यावृत्ति करवाता था , शादी के बाद अगले ही दिन उसे अपने पति की हकीकत का पता चल गया था !पिछले दस से बारह सालों से वो जबरन उसे वैश्यावृत्ति के लिए मजबूर करता चला आ रहा था वह मजबूर थी क्योंकि इरान के क़ानून मैं पति से तलाक लेना कोई आसान काम नहीं हैं ! न जाने इतने  साल वो कितने ही आदमियों के सामने कैसे खुद को परोसती रही और इन बारह सालों मैं उसने अपनी मजबूरी को कभी अपनी मर्जी नहीं बनने दिया! एक दिन अपने पति के किसी दोस्त की सहायता से उसने अपने पति की हत्या कर दी , तब से लेकर आज तक वो जेल की सलाखों मैं बंद है ! आज उसे जेल मैं दस साल साल बीत चुके हैं और वो पति का दोस्त जिसने उसे हत्या के लिए उकसाया था आज खुले आम घूम रहा है !इरान के कानून ने  आज उसे सरेआम पत्थर से मार मार कर मार डालने की सजा दी है ! भारत सरकार से उसने मदद की गुहार लगाईं है !यह कहानी इरान की नहीं बल्कि एक ऐसे संसार की है जहाँ हर कदम पे महिलाओं को एक तुच्छ प्राणी समझ कर उनकी उपेक्षा की जाती है! आखिर क्यों होता है ऐसा की एक औरत जो  कभी माँ बनकर, कभी बेटी बनकर, कभी पत्नी बनकर तो कभी पुत्री बनकर मर्द की सेवा करती है  जब उसे एक दिन जरुरत होती है किसी मर्द की तो उस दिन ये सेवा करने वाले हाथ नदारद होते हैं !आखिर कोई क्यों नहीं समझता की हर कदम पर अत्याचार सहने वाली ये औरत समाज की सबसे बड़ी जरुरत है जिसके बिना कोई भी कार्य असंभव है ! कहते हैं की हर मर्द की सफलता के पीछे एक स्त्री का हाथ होता है, कहते हैं की एक औरत ही मकान को घर बनती है पर क्या ये सही है की घर बनने के बाद उसी औरत को घर से निकल दिया जाए ? हर अत्याचार आज सिर्फ औरतों के साथ ही क्यों हो रहा है ? क्या सिर्फ इसलिए की आज की औरत कंधे से कन्धा मिला कर मर्द के साथ चल रही है ? या इसलिए की आज उसने बुर्के को उतार फेंका है और मनमाने वस्त्र पहन कर सबके सामने आने लगी है,? या इसलिए की अब उसने घर के सीमा लांघ कर दफ्तर जाना शुरू कर दिया है?या इसलिए की अब वो एक शादी करके सारी ज़िन्दगी किसी ऐसे आदमी के साथ नहीं गुजार सकती जो उसके सुख दुःख मैं उसका साथ न दे पाए वास्तव मैं एक कड़वा सच तो यही है की ये वो देश है जहाँ राम बसते थे जिन्होंने स्वयं अपनी पत्नी सीता पर अत्याचार किया था !जिन्होंने निर्दोष होने पर भी अपनी पत्नी सीता की अग्निपरीक्षा ली थी और इस अग्निपरीक्षा के उपरान्त भी उन्होंने सीता को घर से निकाल दिया था !अगर वे भगवान् थे तो उनके लिए अपनी पत्नी का परित्याग करना सही नहीं था !क्योंकि वो जानते थे की सीता निर्दोष है!उसी राम का अनुसरण तो करता है ये संसार, और इसीलिए उस राम को पूजा जाता है और रावन को जलाया जाता है !सुन कर भले ही अजीब लगे परन्तु ये एक तथ्य है की रावन बहुत ही धार्मिक किस्म का आदमी था जिसने अपनी कठिन पूजा के बल पर अमर होने का वरदान प्राप्त किया था ! उसने अपनी बहन के अपमान का बदला लेने के लिए अपना राज्य, अपने प्राण और अपने वंश को भी दांव पर लगा दिया था !आज भी न जाने कितने ही राम  अपनी पत्नियों को घर से निकल देते हैं चाहे वे दहेज़ के कारन निकालें या फिर शक के आधार पर! तथ्य तो यही है की वो आज के युग के राम हैं !और न जाने कितने ही रावन आज भी अपनी बहन बेटी और माँ की इज्ज़त के लिए लड़ते हैं पर आज भी बदले मैं उन्हें वही आग नसीब होती है जिसमे रावन आज भी जल रहा है ! 
औरत के साथ अन्याय आज कोई नयी बात नहीं है वो तो किसी न किसी रूप मैं होता ही रहता है चाहे वो दहेज़ का मसला हो .चाहे भ्रूण हत्या का या फिर कोई और , ये मानसिक रूप से विक्षिप्त एक इसे समाज की कहानी है जिसने अपनी संकीर्ण मानसिकता के चलते कितनी ही स्त्रियों को मौत की नींद सुला दिया !न जाने कितनी ही समस्याओं के कारण आज भी हमारा समाज लड़कियों को वो जगह नहीं दे पाया जिसकी वे हकदार हैं !आज भी बहुत सी लड़कियां ऐसे माहोल मैं जन्म लेती हैं जहाँ लड़की का जन्म होते ही वातावरण मैं अजीब सी चुप्पी और ख़ामोशी व्याप्त हो जाती है !लड़के के इंतज़ार मैं बेठे गाना बजने वालों को घर के बुजुर्गो द्वारा मूक भाव से जाने का संकेत दे दिया जाता है !और यही लोग फिर कन्याओं की भ्रूण हत्या करने से भी नहीं चुकते! उपरोक्त कहानी भी इरान की नहीं बल्कि इस पुरे संसार की है जहाँ हर कदम पर महिलाओं को संघर्ष का सामना करना ही पढता है !पर अब महिलायें कमजोर नहीं हैं अब वो हर राम का मुकाबला करने मैं काफी हद तक सक्षम है! अगर आप सहमत हैं तो क्यों न निश्चय करें की इस बार रावन की जगह राम को जलाया जाए ?जय हिंद !




























Thursday, March 3, 2011

पिता

गए  थे जब वो हमे छोड़ कर
रोई थी आँखे उन्हें देख कर !
कैसे जियेंगे हम उनके बिना
पागल हुए थे यही सोचकर !
रोई थी माँ रात भर जाग कर 
खाई थी रोटी भी तब मांग कर!
नींद हमे तब आई नहीं थी 
तारे गिने थे रात भर जाग कर !
कोशिश बहुत की उन्हें रोकने की 
पर फुर्सत नहीं थी तब उन्हें सोचने की! 
कसमें भी दी और वादे भी किये 
पर सोची नहीं उन्होंने हमे टोकने की! 
आंसू हमारे तब थमने न पाए 
अपने हमारे तब मिलने न आये !
दुखो के बादल घने थे इतने 
की तन मन पे अपने गहराई से छाए! 
हम तो आशा छोड़ चुके हैं 
यादों से भी मुह मोड़ चुके हैं !
पर माँ के गम अभी ताजे हैं 
भले ही आंसू उसके सूख चुके हैं !

Thursday, January 27, 2011

महिलाओं में बढता अकेलापन


महिलाओं में बढता अकेलापन

'ये तुम जो इतना मुस्कुरा रहे हो, क्या गम है जिसको छुपा रहे हो.....................!' रीमा रेडियो के साथ साथ गुनगुना रही थी, तभी पीछे से सुमित्रा देवी ने आकर रेडियो बंद कर दिया और कहने लगीं -' क्यों इस तरह अकेले में बैठ कर गुनगुना रही हो ?' रीमा ने तनाव भरे स्वर में कहा की -' माँ प्लीज़ मुझे अकेला छोड़ दीजिये !' सुमित्रा देवी चली तो गईं पर अपने पीछे एक सवाल  छोड़ गईं! सवाल यह था की आखिर क्यों आज अकेलापन इतना बढता जा रहा है? क्या आज तनाव ने लोगों की ज़िन्दगी में इतनी ज्यादा जगह बना ली है की वे अपनों के लिए वक्त ही नहीं निकल पा रहे हैं! 
                              अकेलेपन की शुरुआत बचपन में ही हो जाती है! ये एक ऐसा वक्त होता है जब बच्चे को अपने माँ बाप की और उनके साथ की सबसे ज्यादा जरुरत होती है,और इस वक्त जब बच्चे को प्यार की जगह अकेलापन मिलता है तो वह तनाव का शिकार होकर अकेलेपन की दुनिया में चला जाता है ! माँ बाप द्वारा अत्यधिक सख्त रवैया अपनाना, बच्चे को डांटना फटकारना और बार बार उसे हतोत्साहित करना आदि ऐसी बाते होती हैं जो बच्चे के भीतर एक डर को जन्म देती हैं! जब बच्चे के भीतर ये डर पनपने लगता है तो वह बाहर के लोगों के साथ  घुल मिल नहीं पाता और अपनी बात दूसरों से कहने मैं भी एक हिचक महसूस करता है! यहाँ प्रकट होता है अकेलापन , जो धीरे धीरे उसकी ज़िन्दगी में अपनी जगह बनाने लगता है! यही बच्चा जब बड़ा होता है तो उसे अकेले वक्त गुज़ारना , दुखद संगीत सुनना और एक ऐसा दोस्त ढूँढना जो उसके सुख दुःख का साथी बन सके , आदि बातें अच्छी लगने लगती हैं ! 
          आज हम स्वयं ही एक ऐसी दुनिया का निर्माण कर रहे हैं जहाँ प्रत्येक व्यक्ति दुविधा में नज़र आता है! जहाँ तनाव इतना ज्यादा बढ़ चूका है की उसे ख़तम करना नामुमकिन सा लगता है ! आज इस तनाव और अकेलेपन की वजह से एक ऐसी पीढ़ी अस्तित्व में आ चुकी है जो इसके नकारात्मक स्वरुप को नकारने में लगी हुई है ! इसका नकारात्मक स्वरुप जब उनकी ज़िन्दगी में बाधा बनने लगता है तब बहुत सी परेशानियाँ अपना सर उठाना शुरू कर देतीं हैं ! 
रीमा के साथ भी यही हुआ उसका रोज़ रोज़ अकेले बैठ कर दुखद संगीत सुनना और कई कई दिनों तक किसी से बेमतलब बात ना करना और स्वयं को एक कमरे में कैद कर लेना जैसी कितनी ही बातें उसके पति और सास को रास नहीं आती थी , जिसका असर उसके वैवाहिक जीवन पर पड़ा और उसे मायके भेज दिया गया! 
वास्तव में सत्य तो यह है की माँ बाप इन्हें छोटी छोटी बाते समझ कर नज़रंदाज़ कर देते हैं जो भविष्य में उनके लिए मुसीबत का सबब बन जाती हैं और कभी कभी तो उनके बसे बसाये घर को भी 'स्वाहा' कर देतीं हैं! यही वजह है की बहुत सी लड़कियां आज अकेले जीवन बिताना चाहती हैं और विवाह जैसे बन्धनों में बंधना ही नहीं चाहतीं ! ऐसा नहीं है की अकेलेपन की शुरुआत  बचपन से ही होती है, कभी कभी ऐसी परिस्थितियां भी जन्म लेतीं हैं जब इंसान यौवनावस्था में पहुँच कर भी अकेलेपन का शिकार हो जाता है ! परवीन बाबी को ही लीजिये अपने ज़माने की मशहूर अभिनेत्रियों में से एक हुआ करती थी! मगर वक्त के साथ साथ तनाव की लहर में इतनी दूर तक बह गई की मरते वक्त भी अकेलेपन ने उसका साथ नहीं छोड़ा !  
महिलाओं में बड़ते अकेलेपन का सबसे बड़ा कारण आज यह है की वह पुरुषों से अलग अपनी एक पहचान बनाना चाहती हैं ! शादी के बाद घर की जिम्मेदारियों में उलझने की अपेक्षा वे अपनी एक स्वतंत्र दुनिया बसाना  चाहती हैं , जहाँ उन्हें कोई रोकने टोकने वाला ना हो और जहाँ कोई उनकी स्वतंत्र दुनिया में बाधा ना बने! यही वजह है की आज महिलाएं प्यार तो करती हैं पर शादी से वह दूर ही रहना चाहती हैं ! दरसल ज़िन्दगी में एक सही इंसान का ना मिल पाना उन्हें भीतर तक इतना निराश कर देता है की वह हर पुरुष को एक ही नज़रिए से देखने लगती हैं ! वह हर रिश्ते में चाहे वह पति का हो , भाई का हो या पिता का एक ऐसा इंसान ढूंढने की कोशिश करने लगती हैं जो उनकी परेशानियों को समझ सके ! उन्हें एक सही दिशा दिखा सके ! जब उनकी यही खोज पूरी नहीं हो पाती तब वह तनाव की शिकार होकर बरबस ही अकेलेपन का एक ऐसा मार्ग चुन लेतीं हैं जहाँ उन्हें मानसिक शान्ति मिलती है ! कभी कभी का अकेलापन अच्छा होता है मगर जब यही अकेलापन इंसान की आदत बन जाता है तो धीरे धीरे बाहर की दुनियां से उसका मन भर जाता है ! ज़िन्दगी के प्रति उसका रवैया भी उदास हो जाता है ! बाहर की दुनियां से उसकी बोलचाल और मित्रता एक दायरे में सिमट कर रह जाती है!   
अकेलापन आज एक ऐसा रोग बन गया है जो महिलाओं को अपने शिकंजे में कसता जा रह है! एक सर्वेक्षण के मुताबिक महिलाएं अकेलेपन की शिकार ज्यादा होती हैं ,इसका सबसे बड़ा कारण यह है की आज भी महिलाओं को हर स्तर पर निराशा हाथ लगती है ! हर रिश्ते में अपने साथ होने वाले भेद भाव को वे पचा नहीं पातीं और नकारात्मक विचारों से भर जाती हैं ! यही नकारात्मक विचार अकेलेपन के रूप में बाहर आते हैं तो महिलाएं तनाव की शिकार हो जाती हैं और स्वयं को ज़िन्दगी से अलग थलग महसूस करने लगती हैं ,जिससे उनके हर नजदीकी रिश्ते में दूरी आने लगती है और वक्त के साथ साथ अकेलापन उनकी ज़िन्दगी में अपनी जगह गहराई से बनाने लगता है ! 

Tuesday, January 25, 2011

महिलाओं में बढता अकेलापन

'ये तुम जो इतना मुस्कुरा रहे हो, क्या गम है जिसको छुपा रहे हो.....................!' रीमा रेडियो के साथ साथ गुनगुना रही थी, तभी पीछे से सुमित्रा देवी ने आकर रेडियो बंद कर दिया और कहने लगीं -' क्यों इस तरह अकेले में बैठ कर गुनगुना रही हो ?' रीमा ने तनाव भरे स्वर में कहा की -' माँ प्लीज़ मुझे अकेला छोड़ दीजिये !' सुमित्रा देवी चली तो गईं पर अपने पीछे एक सवाल  छोड़ गईं! सवाल यह था की आखिर क्यों आज अकेलापन इतना बढता जा रहा है? क्या आज तनाव ने लोगों की ज़िन्दगी में इतनी ज्यादा जगह बना ली है की वे अपनों के लिए वक्त ही नहीं निकल पा रहे हैं! 
                              अकेलेपन की शुरुआत बचपन में ही हो जाती है! ये एक ऐसा वक्त होता है जब बच्चे को अपने माँ बाप की और उनके साथ की सबसे ज्यादा जरुरत होती है,और इस वक्त जब बच्चे को प्यार की जगह अकेलापन मिलता है तो वह तनाव का शिकार होकर अकेलेपन की दुनिया में चला जाता है ! माँ बाप द्वारा अत्यधिक सख्त रवैया अपनाना, बच्चे को डांटना फटकारना और बार बार उसे हतोत्साहित करना आदि ऐसी बाते होती हैं जो बच्चे के भीतर एक डर को जन्म देती हैं! जब बच्चे के भीतर ये डर पनपने लगता है तो वह बाहर के लोगों के साथ  घुल मिल नहीं पाता और अपनी बात दूसरों से कहने मैं भी एक हिचक महसूस करता है! यहाँ प्रकट होता है अकेलापन , जो धीरे धीरे उसकी ज़िन्दगी में अपनी जगह बनाने लगता है! यही बच्चा जब बड़ा होता है तो उसे अकेले वक्त गुज़ारना , दुखद संगीत सुनना और एक ऐसा दोस्त ढूँढना जो उसके सुख दुःख का साथी बन सके , आदि बातें अच्छी लगने लगती हैं ! 
          आज हम स्वयं ही एक ऐसी दुनिया का निर्माण कर रहे हैं जहाँ प्रत्येक व्यक्ति दुविधा में नज़र आता है! जहाँ तनाव इतना ज्यादा बढ़ चूका है की उसे ख़तम करना नामुमकिन सा लगता है ! आज इस तनाव और अकेलेपन की वजह से एक ऐसी पीढ़ी अस्तित्व में आ चुकी है जो इसके नकारात्मक स्वरुप को नकारने में लगी हुई है ! इसका नकारात्मक स्वरुप जब उनकी ज़िन्दगी में बाधा बनने लगता है तब बहुत सी परेशानियाँ अपना सर उठाना शुरू कर देतीं हैं ! 
रीमा के साथ भी यही हुआ उसका रोज़ रोज़ अकेले बैठ कर दुखद संगीत सुनना और कई कई दिनों तक किसी से बेमतलब बात ना करना और स्वयं को एक कमरे में कैद कर लेना जैसी कितनी ही बातें उसके पति और सास को रास नहीं आती थी , जिसका असर उसके वैवाहिक जीवन पर पड़ा और उसे मायके भेज दिया गया! 
वास्तव में सत्य तो यह है की माँ बाप इन्हें छोटी छोटी बाते समझ कर नज़रंदाज़ कर देते हैं जो भविष्य में उनके लिए मुसीबत का सबब बन जाती हैं और कभी कभी तो उनके बसे बसाये घर को भी 'स्वाहा' कर देतीं हैं! यही वजह है की बहुत सी लड़कियां आज अकेले जीवन बिताना चाहती हैं और विवाह जैसे बन्धनों में बंधना ही नहीं चाहतीं ! ऐसा नहीं है की अकेलेपन की शुरुआत  बचपन से ही होती है, कभी कभी ऐसी परिस्थितियां भी जन्म लेतीं हैं जब इंसान यौवनावस्था में पहुँच कर भी अकेलेपन का शिकार हो जाता है ! परवीन बाबी को ही लीजिये अपने ज़माने की मशहूर अभिनेत्रियों में से एक हुआ करती थी! मगर वक्त के साथ साथ तनाव की लहर में इतनी दूर तक बह गई की मरते वक्त भी अकेलेपन ने उसका साथ नहीं छोड़ा !  
महिलाओं में बड़ते अकेलेपन का सबसे बड़ा कारण आज यह है की वह पुरुषों से अलग अपनी एक पहचान बनाना चाहती हैं ! शादी के बाद घर की जिम्मेदारियों में उलझने की अपेक्षा वे अपनी एक स्वतंत्र दुनिया बसाना  चाहती हैं , जहाँ उन्हें कोई रोकने टोकने वाला ना हो और जहाँ कोई उनकी स्वतंत्र दुनिया में बाधा ना बने! यही वजह है की आज महिलाएं प्यार तो करती हैं पर शादी से वह दूर ही रहना चाहती हैं ! दरसल ज़िन्दगी में एक सही इंसान का ना मिल पाना उन्हें भीतर तक इतना निराश कर देता है की वह हर पुरुष को एक ही नज़रिए से देखने लगती हैं ! वह हर रिश्ते में चाहे वह पति का हो , भाई का हो या पिता का एक ऐसा इंसान ढूंढने की कोशिश करने लगती हैं जो उनकी परेशानियों को समझ सके ! उन्हें एक सही दिशा दिखा सके ! जब उनकी यही खोज पूरी नहीं हो पाती तब वह तनाव की शिकार होकर बरबस ही अकेलेपन का एक ऐसा मार्ग चुन लेतीं हैं जहाँ उन्हें मानसिक शान्ति मिलती है ! कभी कभी का अकेलापन अच्छा होता है मगर जब यही अकेलापन इंसान की आदत बन जाता है तो धीरे धीरे बाहर की दुनियां से उसका मन भर जाता है ! ज़िन्दगी के प्रति उसका रवैया भी उदास हो जाता है ! बाहर की दुनियां से उसकी बोलचाल और मित्रता एक दायरे में सिमट कर रह जाती है!   
अकेलापन आज एक ऐसा रोग बन गया है जो महिलाओं को अपने शिकंजे में कसता जा रह है! एक सर्वेक्षण के मुताबिक महिलाएं अकेलेपन की शिकार ज्यादा होती हैं ,इसका सबसे बड़ा कारण यह है की आज भी महिलाओं को हर स्तर पर निराशा हाथ लगती है ! हर रिश्ते में अपने साथ होने वाले भेद भाव को वे पचा नहीं पातीं और नकारात्मक विचारों से भर जाती हैं ! यही नकारात्मक विचार अकेलेपन के रूप में बाहर आते हैं तो महिलाएं तनाव की शिकार हो जाती हैं और स्वयं को ज़िन्दगी से अलग थलग महसूस करने लगती हैं ,जिससे उनके हर नजदीकी रिश्ते में दूरी आने लगती है और वक्त के साथ साथ अकेलापन उनकी ज़िन्दगी में अपनी जगह गहराई से बनाने लगता है ! 


Saturday, July 10, 2010

वो कौन थे


जब भी कभी सांस लेती हूँ , पाती हूँ उन्हें अपनी हर आँहो में
में नहीं जानती वो कौन थे और कहाँ से आये थे ,
बस मुलाकात हो गई थी उनसे ज़िन्दगी की राहों में!
उनसे मिलकर ज़िन्दगी खुशनुमा सी हो गई थी,
जी चाहता था गुजार दूँ सारा जीवन उन्ही की पनाहों में!
अब ना रिश्तों  की चिंता थी, ना बदनामी  का डर था,
हर वक्त रहते थे एक दूजे की निगाहों में!
ज़िन्दगी में कुछ मोड़ ऐसे भी आये, जब रिश्तों की पकड़
ढीली सी पड़ गई थी 1
ना में संभल पाई ना वो संभल पाए,
पर फिर भी हमारी दोस्ती आज सलामत है, 
एक दूजे की बाहों में,
में नहीं जानती वो कौन थे और कहाँ से आये थे,
बस मुलाकात हो गई थी उनसे ज़िन्दगी की राहों में!
                      

Sunday, July 4, 2010

एक छोटे से दायरे में सिमटता वृद्ध संसार



शांतिदेवी आज बहुत खुश नज़र आ रहीं थी, मनोहरलाल जी ने जब उनकी इस ख़ुशी का राज़ पूछा तो कहने लगीं की `आज मेरा बेटा लन्दन से वापस आ रहा है `! मनोहरलाल जी चोंके और कहने लगे - `क्यों भई,कोई फ़ोन आया है क्या?`शांतिदेवी मुस्कराईं और कहने लगीं -`आज मेरे बेटे को गए पूरा एक साल बीत गया मगर वो नहीं आया ,परन्तु आज अपनी माँ का जन्मदिन वो नहीं भूल पायेगा!`यह सुन कर मनोहरलाल जी बोले-`लगता है ६५ साल की उम्र में तुम साथिया गई हो!सचमुच शांतिदेवी आज साथिया गईं थी! वह पुरे दिन इंतज़ार करती रहीं और उनका बेटा नहीं आया !

                                       शांतिदेवी जैसे आज कितने ही बुजुर्ग दंपत्ति हैंजो उम्मीदों के साए में अपनी साड़ी ज़िन्दगी बिता देते हैं , इस उम्मीद में की जिन बच्चों को उन्होंने उंगली पकड़कर चलना सिखाया था आज वही बच्चे उनके लडखडाते क़दमों के लिए बैसाखी का सहारा बनेंगे ! एक वक्त ऐसा भी आता है जब शांतिदेवी की तरह उनके सपनो का संसार टूट जाता है और वक्त के साथ-2 उनकी पथरीली आँखों का इंतज़ार ढीला पड़ जाता है ,और ज़िन्दगी पर उनकी कमजोर सी पकड़ हमेशा के लिए खामोश हो जाती है ! आखिर क्यों होता है ऐसा की जब बुढ़ापे में बचपन फिर लौट कर आता है तो सेवा करने वाले हाथ नदारद होते हैं? वास्तव में तथ्य तो यह है की उम्र के ५० वे पड़ाव को पार करते करते जब ज़िन्दगी बूदी होने लगती है तब वे अपने ही परिवार पर बोझ बनने लगती है, और तब शुरुआत होती है ज़िन्दगी के अकेलेपन की!
                                     
यहाँ सवाल यह नहीं है की बच्चे पढाई  करने परदेश ना जाएँ अपितु ये हालात तो एक ऐसी दिशा पर उंगली उठाते हैं जो पढने के बाद अपनों को अपनों से ही दूर कर देती है , और बच्चों को इतना स्वार्थी बना देती है की वो इस पूरी प्रक्रिया में अपने माँ बाप के योगदान को नाकारा कर देतें  हैं  वास्तव में आज जाने अनजाने हम स्वयं ही एक ऐसे समाज का निर्माण कर रहे हैं जिसमे बुजुर्गों की अहमियत ख़तम सी होती प्रतीत हो रही है ! इस समाज की युवा पीड़ी में ऐसे ऐसे विचार पनपते जा रहे हैं जो माँ बाप के दकियानूसी विचारों को अपनी आज़ादी में खलल मान रहे हैं !यही कारन है की आज इन वृद्ध माँ बाप की ज़िन्दगी सुनी होती जा रही है, और ये हर संभव अभावों का जीवन जी रहे हैं ! इनका वृद्ध संसार एक छोटे से दायरे में सिमट कर रह गया है! अधिकतर माँ बाप तो ऐसे हैं जिनका इंतज़ार कभी ख़तम ही नहीं हुआ , इनके बच्चे पड़ने विदेश तो गए पर पढने के उपरान्त वहीँ बस गए और कभी लौट कर नहीं आये! ऐसे माँ बाप नौकरों के सहारे जीवन काट रहे हैं, परन्तु नौकर कब साथ देंगे ! एक दिन मौका पा कर वे भी सब कुछ लूट कर फरार हो जायेंगे !दिल्ली  मे किये गए एक सर्वेक्षण के मुताबिक़ ४० प्रतिशत वृद्ध माँ बाप , नौकरों के सहारे जीवन काट रहे हैं और २० प्रतिशत स्थान उन बुजुर्गों का है जो अकेले रह कर अपनी तकलीफों को झेल रहे हैं! रही सही कसार उन बच्चों ने पूरी कर राखी है जो अपने माँ बाप के साथ  तो रहते हैं पर पास नहीं !
                           
आज का बुजुर्ग वर्ग अपनों की अपनों के प्रति उपेक्षा को बखूबी समझ रहा है ! इस उपेक्षा को  देखते हुए शायद एक बुजुर्ग अपने बच्चों क प्रति यही सोच रखता है....................

बंद कमरे में मुझे घुटन सी महसूस होती है,
हर वक्त दिल में मुझे चुभन सी महसूस होती है!
चलना सिखाया उंगली पकड़कर जिन्हें,    
दूर अपने से देख कर उन्हें  आज मुझे ,  
जलन सी महसूस होती है ! 
करते हैं कभी कभी पास आने का दिखावा भी वो ,
पर देख कर ये दिखावा उनका मुझे तपन सी महसूस होती है!
ओढा देते हैं यूँ तो कभी कभी वो चादर भी आकर, 
पर वो चादर भी मुझे कफ़न सी महसूस होती है !

                                     वास्तव में यह एक कटु सत्य है की आज का युवा वर्ग अपने बुजुर्ग  माँ बाप के प्रति  उदासीन तो है ही साथ ही वह उनकी ज़िन्दगी को भी अपना गुलाम बना लेने पर उतारू नज़र आ रहा है! बदती उम्र के साथ साथ यही अकेलेपन का दर वृद्ध माँ बाप को भीतर तक झकझोर कर रख देता है , और उन्हें एकान्तता के ऐसे धरातल पर लाकर खड़ा कर देता है जहाँ से उन्हें अकेलेपन और परेशानी से बाहर की दुनिया नज़र नहीं आती ! वह एक ऐसी स्तिथि में पहुँच जाते हैं जहाँ वे खुद को समाज से अलग थलग सा प्रतीत करने लगते हैं ! इन बच्चो को आज अपने माँ बाप के दकियानूसी विचार अपनी जीवनशैली में विष घोलते से प्रतीत हो रहे हैं! जिंदगी के आखिरी पढाव पर आज कितने ही बुजुर्ग मर कर जीने पर मजबूर हो गए हैं! उनकी आवाज़ इतनी थरथरा गई है की उन्हें भगवान् भी आज सुन नहीं पा रहा है !
एक ऐसी ही जिंदगी पर कटाक्ष करती ये पंक्तियाँ उन बुजुर्गों पर इशारा करती हैं जिनके मरने पर उनके अपनों ने वाहवाही लूटी :-

                       जिंदगी के आखिरी पढाव पर मैने उम्मीद की राह सी देखी थी! 
                       थकती हुई उन बूढी आँखों में मैने एक अजीब कराह सी देखी थी!
                        एक आवाज़ जो सुनी ना गई , उसमे एक अनजानी आह सी देखी थी 
                        चुपचाप देखती रही मैं उस मौत को मरते हुए 
                         पर इस अनजाने गम में मैने उसके अपनों की वाह सी देखी थी !

Tuesday, June 8, 2010

हूँ कौन मैं..........................?

रात्रि के मौन मैं चंद बातें सोच कर
कभी कभी दिल मैं यूँ ख्याल आता है
क्यूँ बनाया सूर्य,क्यूँ बनाया चाँद.
क्यूँ बनाई नदियाँ ,क्यूँ बनाया आसमान
क्या जरुरत पहाड़ों की थी,
क्या जरुरत सितारों की थी!
फिर अंत में थक कर यूँ दिल मेरा कहता है
जरुरत नहीं थी इंसा की भी शायद
फिर यह सब बातें पूछने वाली आखिर
हूँ कौन में...............?