Wednesday, June 2, 2010

कलम

यह कलम ही तो है जिसके आगे फीके हैं सब हथियार
यह कलम ही तो है जो लिखती है हाले संसार
सुबह से लेकर रात तक जब कलम मेरी चलती है
तब कही जाकर सच्चाई की एक कविता बनती है
किस तरह इंसान यहाँ पर मारा मारा सा फिरता है
तंग गरीबी से हो मजबूर हारा हारा सा फिरता है
इस तरह कलम मेरी हर सच्चाई बयां करती है
रुक जाते हैं जब हाथ मेरे तो कुछ लिखने की दुआ करती है
रोज़ सुबह उठ कर जब मैं लिखती हूँ
लिखने का नशा चढ़ जाते है
लहरों की तरह विचार उमड़ने लगते हैं
कल्पनाओ का घड़ा भर जाता है