Thursday, January 27, 2011

महिलाओं में बढता अकेलापन


महिलाओं में बढता अकेलापन

'ये तुम जो इतना मुस्कुरा रहे हो, क्या गम है जिसको छुपा रहे हो.....................!' रीमा रेडियो के साथ साथ गुनगुना रही थी, तभी पीछे से सुमित्रा देवी ने आकर रेडियो बंद कर दिया और कहने लगीं -' क्यों इस तरह अकेले में बैठ कर गुनगुना रही हो ?' रीमा ने तनाव भरे स्वर में कहा की -' माँ प्लीज़ मुझे अकेला छोड़ दीजिये !' सुमित्रा देवी चली तो गईं पर अपने पीछे एक सवाल  छोड़ गईं! सवाल यह था की आखिर क्यों आज अकेलापन इतना बढता जा रहा है? क्या आज तनाव ने लोगों की ज़िन्दगी में इतनी ज्यादा जगह बना ली है की वे अपनों के लिए वक्त ही नहीं निकल पा रहे हैं! 
                              अकेलेपन की शुरुआत बचपन में ही हो जाती है! ये एक ऐसा वक्त होता है जब बच्चे को अपने माँ बाप की और उनके साथ की सबसे ज्यादा जरुरत होती है,और इस वक्त जब बच्चे को प्यार की जगह अकेलापन मिलता है तो वह तनाव का शिकार होकर अकेलेपन की दुनिया में चला जाता है ! माँ बाप द्वारा अत्यधिक सख्त रवैया अपनाना, बच्चे को डांटना फटकारना और बार बार उसे हतोत्साहित करना आदि ऐसी बाते होती हैं जो बच्चे के भीतर एक डर को जन्म देती हैं! जब बच्चे के भीतर ये डर पनपने लगता है तो वह बाहर के लोगों के साथ  घुल मिल नहीं पाता और अपनी बात दूसरों से कहने मैं भी एक हिचक महसूस करता है! यहाँ प्रकट होता है अकेलापन , जो धीरे धीरे उसकी ज़िन्दगी में अपनी जगह बनाने लगता है! यही बच्चा जब बड़ा होता है तो उसे अकेले वक्त गुज़ारना , दुखद संगीत सुनना और एक ऐसा दोस्त ढूँढना जो उसके सुख दुःख का साथी बन सके , आदि बातें अच्छी लगने लगती हैं ! 
          आज हम स्वयं ही एक ऐसी दुनिया का निर्माण कर रहे हैं जहाँ प्रत्येक व्यक्ति दुविधा में नज़र आता है! जहाँ तनाव इतना ज्यादा बढ़ चूका है की उसे ख़तम करना नामुमकिन सा लगता है ! आज इस तनाव और अकेलेपन की वजह से एक ऐसी पीढ़ी अस्तित्व में आ चुकी है जो इसके नकारात्मक स्वरुप को नकारने में लगी हुई है ! इसका नकारात्मक स्वरुप जब उनकी ज़िन्दगी में बाधा बनने लगता है तब बहुत सी परेशानियाँ अपना सर उठाना शुरू कर देतीं हैं ! 
रीमा के साथ भी यही हुआ उसका रोज़ रोज़ अकेले बैठ कर दुखद संगीत सुनना और कई कई दिनों तक किसी से बेमतलब बात ना करना और स्वयं को एक कमरे में कैद कर लेना जैसी कितनी ही बातें उसके पति और सास को रास नहीं आती थी , जिसका असर उसके वैवाहिक जीवन पर पड़ा और उसे मायके भेज दिया गया! 
वास्तव में सत्य तो यह है की माँ बाप इन्हें छोटी छोटी बाते समझ कर नज़रंदाज़ कर देते हैं जो भविष्य में उनके लिए मुसीबत का सबब बन जाती हैं और कभी कभी तो उनके बसे बसाये घर को भी 'स्वाहा' कर देतीं हैं! यही वजह है की बहुत सी लड़कियां आज अकेले जीवन बिताना चाहती हैं और विवाह जैसे बन्धनों में बंधना ही नहीं चाहतीं ! ऐसा नहीं है की अकेलेपन की शुरुआत  बचपन से ही होती है, कभी कभी ऐसी परिस्थितियां भी जन्म लेतीं हैं जब इंसान यौवनावस्था में पहुँच कर भी अकेलेपन का शिकार हो जाता है ! परवीन बाबी को ही लीजिये अपने ज़माने की मशहूर अभिनेत्रियों में से एक हुआ करती थी! मगर वक्त के साथ साथ तनाव की लहर में इतनी दूर तक बह गई की मरते वक्त भी अकेलेपन ने उसका साथ नहीं छोड़ा !  
महिलाओं में बड़ते अकेलेपन का सबसे बड़ा कारण आज यह है की वह पुरुषों से अलग अपनी एक पहचान बनाना चाहती हैं ! शादी के बाद घर की जिम्मेदारियों में उलझने की अपेक्षा वे अपनी एक स्वतंत्र दुनिया बसाना  चाहती हैं , जहाँ उन्हें कोई रोकने टोकने वाला ना हो और जहाँ कोई उनकी स्वतंत्र दुनिया में बाधा ना बने! यही वजह है की आज महिलाएं प्यार तो करती हैं पर शादी से वह दूर ही रहना चाहती हैं ! दरसल ज़िन्दगी में एक सही इंसान का ना मिल पाना उन्हें भीतर तक इतना निराश कर देता है की वह हर पुरुष को एक ही नज़रिए से देखने लगती हैं ! वह हर रिश्ते में चाहे वह पति का हो , भाई का हो या पिता का एक ऐसा इंसान ढूंढने की कोशिश करने लगती हैं जो उनकी परेशानियों को समझ सके ! उन्हें एक सही दिशा दिखा सके ! जब उनकी यही खोज पूरी नहीं हो पाती तब वह तनाव की शिकार होकर बरबस ही अकेलेपन का एक ऐसा मार्ग चुन लेतीं हैं जहाँ उन्हें मानसिक शान्ति मिलती है ! कभी कभी का अकेलापन अच्छा होता है मगर जब यही अकेलापन इंसान की आदत बन जाता है तो धीरे धीरे बाहर की दुनियां से उसका मन भर जाता है ! ज़िन्दगी के प्रति उसका रवैया भी उदास हो जाता है ! बाहर की दुनियां से उसकी बोलचाल और मित्रता एक दायरे में सिमट कर रह जाती है!   
अकेलापन आज एक ऐसा रोग बन गया है जो महिलाओं को अपने शिकंजे में कसता जा रह है! एक सर्वेक्षण के मुताबिक महिलाएं अकेलेपन की शिकार ज्यादा होती हैं ,इसका सबसे बड़ा कारण यह है की आज भी महिलाओं को हर स्तर पर निराशा हाथ लगती है ! हर रिश्ते में अपने साथ होने वाले भेद भाव को वे पचा नहीं पातीं और नकारात्मक विचारों से भर जाती हैं ! यही नकारात्मक विचार अकेलेपन के रूप में बाहर आते हैं तो महिलाएं तनाव की शिकार हो जाती हैं और स्वयं को ज़िन्दगी से अलग थलग महसूस करने लगती हैं ,जिससे उनके हर नजदीकी रिश्ते में दूरी आने लगती है और वक्त के साथ साथ अकेलापन उनकी ज़िन्दगी में अपनी जगह गहराई से बनाने लगता है ! 

Tuesday, January 25, 2011

महिलाओं में बढता अकेलापन

'ये तुम जो इतना मुस्कुरा रहे हो, क्या गम है जिसको छुपा रहे हो.....................!' रीमा रेडियो के साथ साथ गुनगुना रही थी, तभी पीछे से सुमित्रा देवी ने आकर रेडियो बंद कर दिया और कहने लगीं -' क्यों इस तरह अकेले में बैठ कर गुनगुना रही हो ?' रीमा ने तनाव भरे स्वर में कहा की -' माँ प्लीज़ मुझे अकेला छोड़ दीजिये !' सुमित्रा देवी चली तो गईं पर अपने पीछे एक सवाल  छोड़ गईं! सवाल यह था की आखिर क्यों आज अकेलापन इतना बढता जा रहा है? क्या आज तनाव ने लोगों की ज़िन्दगी में इतनी ज्यादा जगह बना ली है की वे अपनों के लिए वक्त ही नहीं निकल पा रहे हैं! 
                              अकेलेपन की शुरुआत बचपन में ही हो जाती है! ये एक ऐसा वक्त होता है जब बच्चे को अपने माँ बाप की और उनके साथ की सबसे ज्यादा जरुरत होती है,और इस वक्त जब बच्चे को प्यार की जगह अकेलापन मिलता है तो वह तनाव का शिकार होकर अकेलेपन की दुनिया में चला जाता है ! माँ बाप द्वारा अत्यधिक सख्त रवैया अपनाना, बच्चे को डांटना फटकारना और बार बार उसे हतोत्साहित करना आदि ऐसी बाते होती हैं जो बच्चे के भीतर एक डर को जन्म देती हैं! जब बच्चे के भीतर ये डर पनपने लगता है तो वह बाहर के लोगों के साथ  घुल मिल नहीं पाता और अपनी बात दूसरों से कहने मैं भी एक हिचक महसूस करता है! यहाँ प्रकट होता है अकेलापन , जो धीरे धीरे उसकी ज़िन्दगी में अपनी जगह बनाने लगता है! यही बच्चा जब बड़ा होता है तो उसे अकेले वक्त गुज़ारना , दुखद संगीत सुनना और एक ऐसा दोस्त ढूँढना जो उसके सुख दुःख का साथी बन सके , आदि बातें अच्छी लगने लगती हैं ! 
          आज हम स्वयं ही एक ऐसी दुनिया का निर्माण कर रहे हैं जहाँ प्रत्येक व्यक्ति दुविधा में नज़र आता है! जहाँ तनाव इतना ज्यादा बढ़ चूका है की उसे ख़तम करना नामुमकिन सा लगता है ! आज इस तनाव और अकेलेपन की वजह से एक ऐसी पीढ़ी अस्तित्व में आ चुकी है जो इसके नकारात्मक स्वरुप को नकारने में लगी हुई है ! इसका नकारात्मक स्वरुप जब उनकी ज़िन्दगी में बाधा बनने लगता है तब बहुत सी परेशानियाँ अपना सर उठाना शुरू कर देतीं हैं ! 
रीमा के साथ भी यही हुआ उसका रोज़ रोज़ अकेले बैठ कर दुखद संगीत सुनना और कई कई दिनों तक किसी से बेमतलब बात ना करना और स्वयं को एक कमरे में कैद कर लेना जैसी कितनी ही बातें उसके पति और सास को रास नहीं आती थी , जिसका असर उसके वैवाहिक जीवन पर पड़ा और उसे मायके भेज दिया गया! 
वास्तव में सत्य तो यह है की माँ बाप इन्हें छोटी छोटी बाते समझ कर नज़रंदाज़ कर देते हैं जो भविष्य में उनके लिए मुसीबत का सबब बन जाती हैं और कभी कभी तो उनके बसे बसाये घर को भी 'स्वाहा' कर देतीं हैं! यही वजह है की बहुत सी लड़कियां आज अकेले जीवन बिताना चाहती हैं और विवाह जैसे बन्धनों में बंधना ही नहीं चाहतीं ! ऐसा नहीं है की अकेलेपन की शुरुआत  बचपन से ही होती है, कभी कभी ऐसी परिस्थितियां भी जन्म लेतीं हैं जब इंसान यौवनावस्था में पहुँच कर भी अकेलेपन का शिकार हो जाता है ! परवीन बाबी को ही लीजिये अपने ज़माने की मशहूर अभिनेत्रियों में से एक हुआ करती थी! मगर वक्त के साथ साथ तनाव की लहर में इतनी दूर तक बह गई की मरते वक्त भी अकेलेपन ने उसका साथ नहीं छोड़ा !  
महिलाओं में बड़ते अकेलेपन का सबसे बड़ा कारण आज यह है की वह पुरुषों से अलग अपनी एक पहचान बनाना चाहती हैं ! शादी के बाद घर की जिम्मेदारियों में उलझने की अपेक्षा वे अपनी एक स्वतंत्र दुनिया बसाना  चाहती हैं , जहाँ उन्हें कोई रोकने टोकने वाला ना हो और जहाँ कोई उनकी स्वतंत्र दुनिया में बाधा ना बने! यही वजह है की आज महिलाएं प्यार तो करती हैं पर शादी से वह दूर ही रहना चाहती हैं ! दरसल ज़िन्दगी में एक सही इंसान का ना मिल पाना उन्हें भीतर तक इतना निराश कर देता है की वह हर पुरुष को एक ही नज़रिए से देखने लगती हैं ! वह हर रिश्ते में चाहे वह पति का हो , भाई का हो या पिता का एक ऐसा इंसान ढूंढने की कोशिश करने लगती हैं जो उनकी परेशानियों को समझ सके ! उन्हें एक सही दिशा दिखा सके ! जब उनकी यही खोज पूरी नहीं हो पाती तब वह तनाव की शिकार होकर बरबस ही अकेलेपन का एक ऐसा मार्ग चुन लेतीं हैं जहाँ उन्हें मानसिक शान्ति मिलती है ! कभी कभी का अकेलापन अच्छा होता है मगर जब यही अकेलापन इंसान की आदत बन जाता है तो धीरे धीरे बाहर की दुनियां से उसका मन भर जाता है ! ज़िन्दगी के प्रति उसका रवैया भी उदास हो जाता है ! बाहर की दुनियां से उसकी बोलचाल और मित्रता एक दायरे में सिमट कर रह जाती है!   
अकेलापन आज एक ऐसा रोग बन गया है जो महिलाओं को अपने शिकंजे में कसता जा रह है! एक सर्वेक्षण के मुताबिक महिलाएं अकेलेपन की शिकार ज्यादा होती हैं ,इसका सबसे बड़ा कारण यह है की आज भी महिलाओं को हर स्तर पर निराशा हाथ लगती है ! हर रिश्ते में अपने साथ होने वाले भेद भाव को वे पचा नहीं पातीं और नकारात्मक विचारों से भर जाती हैं ! यही नकारात्मक विचार अकेलेपन के रूप में बाहर आते हैं तो महिलाएं तनाव की शिकार हो जाती हैं और स्वयं को ज़िन्दगी से अलग थलग महसूस करने लगती हैं ,जिससे उनके हर नजदीकी रिश्ते में दूरी आने लगती है और वक्त के साथ साथ अकेलापन उनकी ज़िन्दगी में अपनी जगह गहराई से बनाने लगता है !