गए थे जब वो हमे छोड़ कर
रोई थी आँखे उन्हें देख कर !
कैसे जियेंगे हम उनके बिना
पागल हुए थे यही सोचकर !
रोई थी माँ रात भर जाग कर
खाई थी रोटी भी तब मांग कर!
नींद हमे तब आई नहीं गथी
तारे गिने थे रात भर जाग कर !
कोशिश बहुत की उन्हें रोकने की
पर फुर्सत नहीं थी तब उन्हें सोचने की!
कसमें भी दी और वादे भी किये
पर सोची नहीं उन्होंने हमे टोकने की!
आंसू हमारे तब थमने न पाए
अपने हमारे तब मिलने न आये !
दुखो के बादल घने थे इतने
की तन मन पे अपने गहराई से छाए!
हम तो आशा छोड़ चुके हैं
यादों से भी मुह मोड़ चुके हैं !
पर माँ के गम अभी ताजे हैं
भले ही आंसू उसके सूख चुके हैं !
आपकी प्रस्तुति सराहनीय व् सुन्दर है .गहन भावो को समेटे यह रचना अद्भुत है .आपकी लेखनी में प्रभावित करने की क्षमता है .अच्छे लेखन के लिए बधाई .अलका आपकी प्रस्तुति ने आँखे नम कर दी .
ReplyDeleteधन्यवाद् शिखा
ReplyDeleteअच्छा प्रयास भावों को उतारने का... लगे रहिए :-)
ReplyDelete"आंसू हमारे तब थमने न पाए
ReplyDeleteअपने हमारे तब मिलने न आये!"
दु:खद - वक्त और आज की इंसानियत को आइना दिखाती पंक्तियाँ - सोच को शब्द देने का सार्थक प्रयास