Saturday, May 29, 2010

क्या तुम्हे नज़र नहीं आया



स्वतंत्र कहूँ परतंत्र कहूँ मैं मुझे समझ नहीं आया
देश हुआ फिर से गुलाम क्या तुम्हे नज़र नहीं आया
चारों तरफ बर्बादी और आतंक का माहौल छाया
देश हुआ फिर से गुलाम क्या तुम्हे नज़र नहीं आया

अंग्रेजो ने जब छिनी थी हमसे यह आज़ादी
मेने देखा तुमने देखा न करने दी मनमानी
पर अपने जब खून चूस रहे हैं मुल्क की इज्ज़त लूट रहे हैं
कैसा नशा ये तुम पर छाया सिर्फ मेने देखा
पर क्या तुम्हे नज़र नहीं आया

अंग्रेजी ने राज़ जमाया हिंदी का स्थान पाया
अब जीत पर अपनी हंसती है ताने हिंदी पर कसती है
अंग्रेजी ने देश मे अपने यह कैसा राज़ जमाया
सिर्फ मेने देखा पर क्या तुम्हे नज़र नहीं आया

पाश्चात्य संस्कृति डोल रही है राज़ हमारे खोल रही है
हम अंग्रेजी राज़ मैं रहते हैं कपड़ों की हालत बोल रही है
पाश्चात्य संस्कृति ने देश मैं अपने यह कैसा राज़ जमाया
सिर्फ मैंने देखा पर क्या तुम्हे नज़र नहीं आया

मर्दों संग अत्याचार हुए स्त्री संग बलात्कार हुए
जब इसी मुल्क के लोगों द्वारा ये देश मेरा खल्लास हुआ
ऐसे ऐसे कानून बने इन्साफ नहीं नाइंसाफ हुआ
अब पूछती हूँ मैं तुमसे क्यों रोलेक्ट एक्ट यह पास हुआ
देख धरा की ऐसी हालत जब भगवान् यहाँ शरमाया
सिर्फ मेने देखा पर क्या तुम्हे नज़र नहीं आया


स्वतंत्र कहूँ परतंत्र कहूँ मैं मुझे समझ नहीं आया
देश हुआ फिर से गुलाम क्या तुम्हे नज़र नहीं आया

1 comment:

  1. समाज की जीती जागती तस्‍वीर उतार कर रख दी आपने, बधाई।

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